योग है इस वायरस की दवा

योग है इस वायरस की दवा

सिद्धासन, सिद्धयोनि आसान और मूलबंध। इन यौगिक क्रियाओं की बात आते ही ऐसा लगता है मानो आध्यात्मिक जागरण की बात शुरू होने वाली है। पर नहीं, इस बार आध्यात्मिक जागरण की बात हाशिए पर है। बात एक ऐसी महामारी की होनी है, जो कोरोना से कम खतरनाक नहीं है। फर्क इतना कि कोरोना वायरस का खौफ है। पर इस वायरस से लोगों को प्रेम हो गया है। यह है सेक्स अडिक्शन यानी सेक्स की लत। जी हां, आपने सही सुना। पूरे लॉकडाउन के दौरान ज्यादातर लोगों ने घरों में दुबक कर कोरोना वायरस से अपना बचाव करने का तो भरपूर इंतजाम किया। पर इस वायरस से मन-मंदिर को बीमार होने दिया। ज्यादातर मामलों में इसकी परिणति कम्पलसिव सेक्शुअल बिहेवियर के रूप में हुई। हालात ऐसे बने हैं कि विश्वस्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) को भी इसकी चिंता करनी पड़ गई है।

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जानकर हैरानी होगी कि भारत लॉकडाउन के दौरान अश्लील वेबसाइट्स के ट्राफिक के मामले में अमेरिका और इंग्लैंड के बाद तीसरे स्थान पर था। सरकार ने साढ़े तीन हजार अश्लील बेवसाइट्स को प्रतिबंधित कर दिया। बावजूद भारत कनाडा को पछाड़कर तीसरे पायदान पर पहुंच गया। महिलाओ ने भी इस मामले में पिछले तमाम रिकार्ड तोड़ दिए। उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक अश्लील वेबसाइट्स पर जाने वालों में तीस फीसदी महिलाएं थीं। चिंताजनक बात यह कि बच्चों की पहुंच भी अश्लील बेवसाइट्स तक हो गई। संकट काल में शरीर की ऊर्जा का उपयोग सकारात्मक कार्यों के लिए करना था। पर दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं हो सका। महर्षि पतंजलि ने कहा है – योगश्चित्तवृत्ति निरोध: यानी चित्त वृत्तियों का निरोध ही योग है। कोरोना संकट आया और मानसिक रोगियों की संख्या बढ़ने लगी तो योगाचार्यों ने ध्यान साधना पर काफी जोर दिया। ताकि चित्त वृत्तियों का निरोध हो सके। मन-मंदिर को शांत किया जा सके। तब किसी ने सोचा भी न था कि दूसरी तरह के मनसिक रोग भी खतरनाक रूप लेगा।

इस वायरस का इलाज योग से ही संभव है। पुरूषों के लिए सिद्धासन, महिलाओं के लिए सिद्धयोनि आसान और सबके लिए मूलबंध असरदार साबित हो सकते हैं। पहले आमतौर पर इन यौगिक क्रियाओं को केवल और केवल ब्रह्मचर्य धारण करने वालों, आध्यात्मिक साधकों के लिए ही उपयुक्त माना जाता था। कैवल्यधाम, लोनावाला के संस्थापक स्वामी कुवल्यानंद और बिहार योग विद्याल के सस्थापक परमहंस स्वामी सत्यानंद सररस्वती ने सिद्धासन, सिद्धयोनि आसन को लेकर भ्रांतियां दूर की। इसके साथ ही स्वामी सत्यानंद सररस्वती ने मूलबंध पर विस्तृत शोध करके पुस्तक लिखी तो योग विद्या मानो फिर से परिभाषित हो गई। देश-विदेश में अनेक शोध किए गए तो गृहस्थों के लिए भी इनकी उपयोगिता साबित हुई।

पहले मूलबंध के फायदे समझते हैं। बिहार योग विद्यालय के निवृत परमाचार्य परमहंस स्वामी निरंजनानंद सरस्वती ने घेरंड संहिता के अपने भाष्य में मूलबंध की चर्चा करते हुए कहा है कि प्राचीन काल की यह गुप्त विद्या इतनी शक्तिशाली है कि इससे वृद्धावस्था नष्ट होती है। यानी वृद्धावस्था को अधिक समय तक टालना संभव हो पाता है। मूलाधार चक्र उद्दीप्त होता हैं। स्वामी सत्यानंद सरस्वती की पुस्तक “मूलबंध-द मास्टर की” के मुताबिक मूलबंध शरीर और मन को विश्रांत करने की शक्तिशाली विधि है। यह इतना असरदार है कि सिजोफ्रेनिया के मरीजों को भी लाभ मिलता है। यदि शरीर स्वस्थ है तो यह परानुकंपी व तंत्रिका-तंत्र की क्रियाशीलता को बढाता है। साथ ही श्वसन गति, हृदय गति और रक्तचाप को कम करता है। अल्फा, बीटा, थीटा जैसे मानसिक तरंगों को भी स्थिर करता है। यौन समस्याओं का समाधान और स्वस्थ यौन संबंधों को बनाए रखने व उनके संपोषण में अहम् भूमिका निभाता है। टेस्टोस्टेरोन स्राव व शुक्र निर्माण नियंत्रित करता है। इससे कमोत्तेजना शांत होती है। महिलाओं के लिए भी बड़े काम का है। रजोनिवृत्ति के बाद की समस्याओं के समाधान में इसकी बड़ी भूमिका है।

अब सिद्धासन और सिद्धयोनि आसनों की बात। आधुनिक योग की आयंगार शैली के जनक बीकेएस आयंगार ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “लाइन ऑन योगा” में 84 लाख आसनों में सिद्धासन को महत्वपूर्ण माना है। अय्यंगार के मुताबिक, “ सिद्ध के समान आसन नहीं, केवल के समान कुंभक नहीं, खेचड़ी के समान मुद्रा नहीं और नाद के समान लय (मन की लयता) नहीं।“ योग के अनेक ग्रंथों में इस बात का उल्लेख है कि प्राचीनकाल में भी जितने भी सिद्ध योगी हुए, प्राय: सिद्धासन में बैठकर ही साधना किया करते थे। इस आसन की लोकप्रियता जापान में इतनी हुई है कि उसके आधार पर निर्मित दारूमा डॉल्स बेहद लोकप्रिय है। इस खिलौने को चाहे जिस तरह भी रख दें, सिद्धासन की मुद्रा में बैठ जाएगा। ऐसा उसमें भरे गए पारे के कारण होता है। सिद्धासन की विधि ऐसी है कि मूलबंध स्वत: लग जाता है।

 

वैज्ञानिकों ने सिद्धासन के अभ्यासियों का अध्ययन किया तो पाया कि उनके शरीर से ऊर्जा का ह्रास बहुत ही कम हो रहा था। ऊर्जा का ज्यादा भाग शरीर में ही संरक्षित हो रहा था। आमतौर पर योगासनों के दौरान गुरूत्वाकर्षण के कारण शरीर से काफी मात्रा में ऊर्जा का ह्रास होता है। सिद्धासन में बैठे लोगों में मामले में पाया गया कि ऊर्जा शरीर के भीतर एक वार्तुल में घूमती रहती थी। वर्तुल पूरा होते ही यह चक्राकार घूमने लगती थी।

योग विज्ञानियों के मुताबिक, ऊर्जा ऊपर की तरफ उठने से स्वाभाविक रूप से कामवासना को लेकर मन में विचार उठने बंद होते हैं। मन-मस्तिष्क उच्चतम स्तर पर काम करने लगता है। चूंकि शरीर के सभी चक्र स्वतंत्र रूप से काम करते हैं। इसलिए मूलबंध का भी परिणाम देने वाले सिद्धासन में बैठकर प्राणायाम किया जए तो मूलाधार चक्र का जागरण होने की संभावना बढ़ जाती है, जिसका असर सहस्रास चक्र तक होता है, जिसे परम चेतना का स्थान माना जाता है। कुंडलिनी की ऊर्ध्व यात्रा यहीं समाप्त होती है। इन तथ्यों के आधार पर कहा जा सकता है कि केवल सिद्धासन की साधना भी इस तरहकी जाए कि मूलबंध लग जाए तो सेक्स अडिक्शन और कम्पलसिव सेक्शुअल बिहेवियर सेमुक्ति मिल जाएगी।

(लेखक ushakaal.com के संपादक और योग विज्ञान विश्लेषक हैं)

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